तेजी से बढ़ते यूटिलिटी व्हीकल सेगमेंट में पेट्रोल मॉडल्स की हिस्सेदारी पिछले एक साल में करीब दोगुना हो गई है। इसकी वजह BS-VI एमिशन स्टैंडर्ड अपनाने के बाद डीजल व्हीकल्स की कॉस्ट में बढ़ोतरी और पेट्रोल-डीजल के बीच कीमत का घटता अंतर है। यह बात इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में कही गई है।
बिक्री के मामले में डीजल वेरियंट को लगा झटका
भारतीय बाजार में पिछले वित्त वर्ष में बिकी हर 5 यूटिलिटी व्हीकल्स में से 3, पेट्रोल पर चलने वाली थीं। जबकि इससे एक साल पहले की अवधि में हर 3 में से करीब एक यूटिलिटी व्हीकल पेट्रोल पर चलने वाली रही। यह बदलाव खासतौर से एंट्री-लेवल SUV सेगमेंट में देखने को मिला। इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020 में इस सेगमेंट में डीजल वेरियंट्स की हिस्सेदारी 60 फीसदी से घटकर 25 फीसदी पर पहुंच गई।
दूसरे सेगमेंट में भी घटी है डीजल मॉडल्स की हिस्सेदारी
पिछले वित्त वर्ष के दौरान हैचबैक्स में डीजल वेरियंट्स की प्राथमिकता 5 फीसदी से घटकर 1 फीसदी हो गई है। वहीं, सेडान में यह 33 फीसदी से घटकर 6 फीसदी और वैन्स में 10 फीसदी से घटकर 3 फीसदी पर पहुंच गई है। इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना है कि डीजल व्हीकल्स की ऊंची कीमत, पेट्रोल व्हीकल्स की फ्यूल इफीशिएंसी (माइलेज) में सुधार और पेट्रोल-डीजल के प्राइस में अंतर कम होने की वजह से लो-रनिंग कास्ट का फायदा डीजल के हाथ से निकल गया है।
मारुति सुजुकी में मार्केटिंग एंड सेल्स के सीनियर एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर शशांक श्रीवास्तव का कहना है, ‘अगर अब पेट्रोल और डीजल व्हीकल्स की रनिंग कॉस्ट एक जैसी है तो कोई ग्राहक भला डीजल व्हीकल के लिए ज्यादा पैसे क्यों चुकाएगा।’ मई 2012 में पेट्रोल और डीजल का प्राइस गैप अपने पीक (उच्चतम स्तर) पर था। पेट्रोल के मुकाबले डीजल 40 फीसदी सस्ता था। डीजल के डीरेगुलेटेड होने के बाद धीरे-धीरे इसकी कीमतों में बढ़ोतरी हुई। अब कई जगहों पर पेट्रोल और डीजल के बीच कीमत का अंतर 5 रुपये से कम रह गया है।